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बाजार अनूठे – कविता

दिल का दर्पण
दिल का दर्पण
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प्रीत नहीँ पर सिँगार अनूठे
देहोँ के यह हैँ बाजार अनूठे
अंधकार है जहाँ सारा जीवन
खोजेँ वहाँ जीवन सँचार अनूठे

जीवन हीन हैँ व्यथित यहाँ पर
भावना शून्य हैँ पथिक यहाँ पर
लाशेँ मोल भाव करेँ स्वँय का
इन गलियोँ के व्यापार अनूठे

बीज किसी का पौध किसी की
लहू किसी का धौँस किसी की
आँसू और मुस्कानोँ के मेले मेँ
यहाँ के देखे साहूकार अनूठे

मोहिंदर कुमार

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