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“हिन्दी ब्लोगिंग ’हिंग्लिश’ स्वरूप को अपना रही है – CONTEST”

दिल का दर्पण
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किसी भी भाषा की बात दो संदर्भों में की जा सकती है. भाषा का एक स्वरूप तो वह है जो साहित्यकार अपनाते हैं और दूसरा स्वरूप आम आदमी अपने लेखन और बोलचाल के लिये प्रयोग में लाता है. भारत में अनेकों प्रांतीय वह स्थानीय भाषायें बोली जाती हैं और इन सब का एक क्षेत्र है जिससे तनिक सा आगे निकलने पर इन भाषाओं में कहीं थोडा और कहीं कहीं बहुत अधिक अन्तर आ जाता है. परन्तु इस सब के बीच एक बात जो विचारणीय है वह है कि अनेको शब्द ऐसे है जो इन भाषाओं में ऐस रच बस गये हैं कि यह बताना कठिन है कि यह शब्द किस भाषा की बपौती हैं.

विद्वानों के अनुसार बहुत सी भारतीय भाषाओं की जननी “संस्कृत” है. दक्षिण भारतीय भाषाओं और उत्तर-पूर्वी भाषाओं में संस्कृत भाषा के कई शब्दों का समावेश है. हिन्दी भाषा भी इससे अछूती नहीं अपितु संस्कृत से इसका नजदीकी रिश्ता है.

जम्मू काशमीर, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उतरांचल, मध्य-प्रदेश और बिहार में हिन्दी को समझने, बोलने और लिखने वाले अन्य राज्यों की संख्या में काफ़ी अधिक हैं. और यदि हम स्वर के आधार पर हिन्दी का विभाजन करें तो हिमाचली हिन्दी, पंजाबी हिन्दी, हरियाणवी हिन्दी और बिहारी हिन्दी का रूप उभर कर आयेगा.

चूकिं अंग्रेजों और मुगलों ने भारत पर कई दश्कों तक राज किया यहां की सभ्यता, संस्कृती एंव भाषा पर अंग्रेजी व उर्दू भाशा की छाप भी है.

जहां तक हिन्दी ब्लोगिंग की बात है निश्चय रूप से ब्लोगर हिंग्लिश स्वरूप को अधिक अपना रहे हैं. कारण स्पष्ट है कि प्रत्येक ब्लोगर हिन्दी का विद्वान तो है नहीं और ना ही साहित्यकार कि उसकी कलम से स्पष्ट, शुद्ध व कलिष्ट हिन्दी का प्रवाह निकले. जब हम हिन्दी के प्रसार प्रचार की बात करते है तो हमें यह सपष्ट होना चाहिये कि हम किसे श्रेणी की हिन्दी की चर्चा कर रहे हैं….साहित्य स्वरूप या आम बोलचाल…… किंचित उत्तर होगा साधारण बोलचाल की भाषा. जब हिन्दी किसी भी रूप में जन जन तक पंहुचेगी और इसके पढने और बोलने वाले होंगे तो स्तर के विकास की सम्भावना रहेगी अन्यथा इसके स्वरूप के बदलने की सम्भावना से अधिक इसके विलुप्त होने की सम्भावना हो जायेगी.

एक और बात जो विचारणीय है वह यह है कि हिन्दी का हिंग्लिश रूप समाज के सभी वर्गों द्वारा समान रूप से ग्राहय है और पूर्ण रूप से स्पष्ट भी. दूसरे शब्दों में शुद्ध हिन्दी के वाक्य और हिंग्लिश के समानार्थक वाक्य का समान अर्थ ही प्रेषित होता है. ब्लोगिंग से पहले यह चर्चा का विषय रहा है कि “अखबारी” लेखन हिंग्लिश को अपना कर हिन्दी भाषा की सबसे अधिक हानि कर रहा है.

हिन्दी और इंगलिश के मिश्रण की जब बात चलती है तब हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि यह बात सिर्फ़ हिन्दी पर ही खरी नहीं उतरती परन्तु अन्य भाषायें भी इसका शिकार हुई हैं. यहां अनुपात कुछ अधिक लगता है चूंकि अनेकोंनेक भाषायें केवल एक प्रदेश में भी बोली जाती हैं.

हिंग्लिश स्वरूप निश्चय ही हिन्दी के के प्रसार को बढावा ही दे रहा है.. इससे इंगलिश जानने वालों की भी इसमें रूचि बनी रहती है और वह भी इस बात से प्रसन्न हैं कि उनका भी हिन्दी पर कुछ न कुछ अधिकार तो है ही.

अब रही यह बात कि इससे हिन्दी को व्यापक स्वीकार्यता मिलेगी या नहीं तो यह स्वीकार्यता हम किस रूप में और किस से पाना चाहते है उस पर निर्भर है. भाषा के रूप में, भाव के प्रसार के रूप में, कही गई बात को गन्तव्य तक पंहुचानें में तो कहीं कोई कमी नजर नहीं आती. परन्तु हमें यह नहीं भूल जाना चाहिये कि हिन्दी और अंग्रेजी के शब्दों का मिश्रण वाक्य के रूप में एक बात है परन्तु हिन्दी के शब्दों को तोड मरोड कर ऐसा रूप देना जिनका एकाकी रूप से कोई अर्थ ही न निकले निश्चय ही हिन्दी भाषा से खिलवाड होगा और इसके प्रति सचेत रहने की आवशकता है.

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