Menu
blogid : 10766 postid : 604732

” हिन्दी बाजार की भाषा है…….. CONTEST”

दिल का दर्पण
दिल का दर्पण
  • 41 Posts
  • 783 Comments

भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति तक अपने विचारों को पूर्णतया प्रेषित करने में सक्षम होता है. यही कारण है कि हमें अपने विचारों को स्पष्ट और सरल भाषा में दूसरे व्यक्ति तक पंहुचाना चाहिये. यदि हम हिन्दी भाषा के विषय में बात कर रहे हैं तो निश्चय ही यह एक स्पष्ट और सरल भाषा है जिसका विश्व में अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद तीसरा स्थान है. यह अपने आप में एक प्रमाण है कि हिन्दी बाजार या गरीब और अनपढों की भाषा नहीं है परन्तु एक ऐसी भाषा है जिस पर हमें गर्ब होना चाहिये.

यदि भारतवर्ष की बात की जाये तो ५५ प्रतिशत लोग हिन्दी भाषा प्रयोग करते हैं. यू.एस. नें भी हिन्दी भाषा की गरिमा को समझा है और वहां के विश्व विद्यालयों में गैर भारतीय विद्यार्थियों की संख्या काफ़ी अधिक है जो हिन्दी सीख रहे हैं.

विदेशों में बसे भारतीय जिस तरह हिन्दी भाषा के लिये कार्य कर रहे हैं वह उल्लेखनीय है. वर्ल्ड हिन्दी फ़ाऊंडेशन (WHF) आज से कुछ बारह वर्ष पूर्व डा. राम चौधरी द्वारा एक धर्मार्थ शैक्षिक संस्थान के रूप में ओस्वेगो, न्यूयोर्क में स्थापित की गई थी. यह संस्था वहां भारतीय सामाजिक केन्द्रों में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये बुद्धि जीवियों और स्कूल और विद्यालयों के छात्रों को आमन्त्रित करती है और भारतीय साहित्यकारों के शोध कार्य से उनका परिचय करवाती है. इस कार्य के लिये वह संबंधित संस्थाओं से संपर्क में रहते हैं. इसके अतिरिक्त हिन्दी कथा वाचन, नाटक व अन्य कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से वहां के लोगों में हिन्दी के प्रति रूचि उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं.

यदि इस तरह के प्रयास विदेशों में हो सकते हैं तो हमें इस कार्य में कौन रोक रहा है.

भारत एक बहु-भाषीय राष्ट्र है इसीलिये कदाचित प्रादेशिक भाषायें हिन्दी के प्रसार में बाधक हैं.

गांधी जी ने कहा था ” मैं हिन्दी के जरिये प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता परन्तु उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूं” जब हम राजभाषा हिन्दी की बात करते हैं तो हमें प्रांतीय भाषाओं का भी उतना ही आदर करना है परन्तु इसके साथ इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सभी भाषाओं को राजभाषा नहीं बनाया जा सकता और जिसे (हिन्दी) बनाया गया है वह मात्र किताबों में ही न रह जाये इसके लिये कार्य करना भी आवश्यक है.

एक परिवार, एक गांव की ईकाई है… इसी तरह गांवों से शहर और शहरों से देश का निर्माण होता है… तो पहल तो हमें घर से ही करनी होगी
तभी यह कार्यविन्त हो कर फ़लीभूल हो पायेगी.

हिन्दी को जन जन की भाषा बनाने के लिये सबके मन में हिन्दी के प्रति रूचि उत्पन्न करनी होगी और इस कार्य का आरम्भ बचपन से करना होगा.

बच्चों को जो कार्य सुरुचिपूर्ण लगता है वह उसे करने में उत्साह दिखाते हैं और जल्द ही उसमें प्रवीण भी हो जाते हैं. आरम्भिक दौर में स्कूलों में छात्रों पर भारी भरकम हिन्दी व्याकरण का बोझ न डाल कर चित्रों, शिक्षाप्रद कहानियों, नाटकों और गीतों के द्वारा रूचि जागरण का कार्य करना होगा. एक बार उनमें रूचि जाग गई तो फ़िर वह व्याकरण और साहित्य को पढनें में नहीं हिचकेंगे.

अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की भी यह जिम्मेदारी है कि वह हिन्दी के विषय को भी अन्य विषयों की तरह ही प्राथमिकता दें वह एक मुख्य विषय के रूप में पढायें.

राजभाषा की प्रगति के लिये कार्यलयों में हिन्दी सप्ताह और हिन्दी पखवाडा मनाया जाता है, बहुत से कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं परन्तु उसके बाद साल भर सब सो जाते हैं. सिर्फ़ कागजों का पेट भर दिया जाता है. यहां पर यह आवश्यक है कि प्रत्येक कर्मचारी व अफ़सर अपने हिन्दी में किये गये कार्य का व्योरा रखे और पद्दोन्ति और इन्क्रीमेंट के समय इस व्योरे की समीक्षा की जाये.

आरम्भ में यह तर्क संगत भले ही न लगे परन्तु किसी भी कार्य को एक आदत बना लेना आसान नहीं होता और जब आदत हो जाये तो उसे छोडना भी सहज नहीं होता. आरम्भ में टिप्पण और मसौदा लेखन दिये गये प्रारूपों के अनुसार किया जा सकता है बाद में यह एक दम आसान हो जायेगा. अंग्रेजी पर अपनी निर्भरता घटाने से ही हिन्दी का विकास सम्भव है…इसका यह कतई अर्थ नहीं कि हम अंग्रेजी की प्रवीणता का त्याग कर रहे हैं… उचित मंच पर उचित प्रस्तुति ही सार्थक होती है.

यदि कोई व्यक्ति हिन्दी को बाजार, गरीब और अनपढों की भाशा मानता भी है तो इसमें क्या बुराई है कि इसको उठा कर आसमान की ऊंचाई पर पहुंचायें और विश्व की भाषा बना दें.

मोहिन्दर कुमार
09899205557

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply