दिल का दर्पण
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वो दिन कब आयेगा
नैन तेरे जब पढ लेगें
मूक मेरे स्वप्नों की भाषा
वो दिन कब आयेगा
जब चेहरे पर पडी लट को मैं
अपने इन हाथों से सुलझाऊंगा
ठोडी को तेरी उठा किंचित
आंख से आंख मिलाऊंगा
वो दिन कब आयेगा
अधरों से जब अधर मिलेंगे
मकरन्द बहेगा अवरिल
स्वासों में इक ज्वार उठेगा
धडकन गायेगी पंचम
वो दिन कब आयेगा
जब सीने लग तुम स्वंय कहोगी
पूर्णता की चाह मुझे है
छा जाओ तुम मन धरा पर
बरसो मुझ पर तुम भर्राकर
वो दिन कब आयेगा
जब भूल कर देखा स्वप्न पुराना
आवाहन दोगी आते पल को
कडवी सारी यादें विसरा कर
चखोगी फ़िर किसी मीठे फ़ल को
वो दिन कब आयेगा
स्वप्न तेरी आंखों के जब
मुझसे साझे हो पायेंगे
झरते पत्तों की भुला विसात को
ये मरु फ़िर बगिया हो जायेंगे
वो दिन कब आयेगा
मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
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