दिल का दर्पण
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जब भी मुड कर देखा है
पाई हुई मंजिलों को
तय की दूरियों को
पीछे छूटे रास्तों को
हैरान हुआ हूं
कई अक्स आंखों मे
चलचित्र बन लहराते हैं
वर्षो का जीवन
क्षण भर में जी जाता हूं
खोने की, पाने की
रूठने-मनाने की
कहकहों की, रुलाई की
मिलन की, जुदाई की
फ़ैरहिस्त का
छोर मिल न पाता है
ठूंठ हूं या हरा हूं
सोच नहीं पाता हूं
जोड घटा करते करते
शून्य हुआ जाता हूं
किंचित यही
चिरपरिचित विघटन है
ठहराव का परिणाम है
ठहरे पानी में सडांध
यही दर्शाती है गति जीवन है
गति जीवन को भाती है
मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
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