Menu
blogid : 10766 postid : 58

लकीरों के मुताबिक – गजल

दिल का दर्पण
दिल का दर्पण
  • 41 Posts
  • 783 Comments

बायसे तकलीफ़ मगर है अजीज वो मुझको
जज्वा-ए-दिल है खुद से जुदा मैं कैसे करूं

अपने ख्वाबों की बदौलत मैं यहां तक पहुंचा
है गर एक टूट गया मैं भला काहे को डरूं

रात की चादर में हों चाहे लाख अंधेरे सिमटे
जुगनू बन के सही कोई कोना रोशन तो करूं

ओढ कर खोल कोई न जिया जायेगा मुझसे
क्यों न हालात से लड मौत मैं खुद की मरूं

कुछ तो करना है हाथ की लकीरों के मुताबिक
चाहता हूं कुछ एक रंग अपनी मर्जी के भरूं

मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.in

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply