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कौन हूं मैं – कविता

दिल का दर्पण
दिल का दर्पण
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कौन सा परिचय दूं मैं अपना
जीवन की संध्याबेला होने को आयी
स्वंय से भी मेरा परिचय हो नही पाया
क्या नाम गोत्र ही
वाक सरोत्र ही
वास्तविक पहचान है मेरी
क्या मैं वह एक विशाल शिला हूं
जो समय की धारा में बहते बहते
शीत ताप को सहते सहते
अपना अस्तित्व विसार चुकी है
एंव रज कण में परिवर्तित है
क्या मैं सूर्य हूं एक बुझा हुआ
धधकती ज्वालाओं को समाहित कर
एक ही धूरी पर घूम रहा
औरों को प्रकाशित कर
अंधकार में लिप्त हुए
क्या परिस्थियों का दास हूं मैं
मुखोटे लगा कर स्थापित हूं
दर्पण भी विस्मित है
स्वंय भी भरमाया हूं

कालचक्र के गूढ मन्थन से
जो भी उपजा या पाया है
वो अमृत है या तीव्र हाला
इसका निर्णय कौन करे
भीतर उपजी कुण्ठाओं का
अब तक विशलेषण हो ना पाया
कौन सा परिचय दूं मैं अपना

मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.in

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