दिल का दर्पण
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बंद पलकें
व जागते सपने
मेरा संसार
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छुआ उसने
न जाने क्या सोच
पुलकित मैं
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घडी के कांटे
टिक टिक करते
बीता जीवन
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निगला कौन
अंतिम पहर में
सोते चांद को
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धूप जलाती
या शीतल करती
वहा पसीना
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नम नयन
होठों पर कंपन
कथित मौन
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आ भी जा अब
बिसरा कर सब
वक्त नहीं है
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मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
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