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हर मनुष्य के जीवन में कुछ पल ऐसे होते हैं जिनसे वह किसी का परिचय नहीं करवाना चाहता. कभी कभी तो वो खुद भी यादों के उन गलियारों में जाने से बचता है. इसी भाव से इस गीत का जन्म.. आप इसे पढ कर और नीचे दिये लिन्क पर सुन कर बताईये.. आपको कैसा लगा.
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
दर्दों की परतें दर परतें
और यादों के लगे हैं जाले
खुद भी जहां नहीं.. जाता मैं
तुम्हें कैसे ले जाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
चांद सरीखा उसका चेहरा
मेरी आंखे थी भर बैठी
नित नया सपना मुझे रुलाये
ऊपर से मुस्काऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
ना खत, ना कोई तस्वीरें
ना.. सूखे फ़ूल किताबों में
साथ मेरे ईक बीता कल है
जिसको भूल न पाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं.
मेरा लिखा गीत – “पहली बार मिले हो मुझसे” आप इस लिंक पर सुन सकते हैं.
http://dilkadarpan.blogspot.in/2010/11/blog-post_25.html
मोहिंदर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.in
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