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सच सच कह बात सखी

दिल का दर्पण
दिल का दर्पण
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नेट पर सर्फ़िग करते समय मुझे कविता के रूप में कुछ रचनाये मिली जिनका शीर्षक था…”उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली अंगिया”. प्रथम रात्रि प्रणय पर यह कवितायें इतने खुलेपन से लिखी गई थी क्या कहूं. उन्हें पढ कर लगा कि क्या यहीं बात एक व्यवस्थित और साफ़ सुथरे ढंग से नहीं कही जा सकती.. इसी विचार से इस रचना का जन्म हुआ.

कैसे पिया संग पहली रात कटी
हम से सच सच कह बात सखी

हाये आती मुझ को लाज बडी
कहूं कैसे उस पल की बात सखी

न ले लाज शर्म की आड अभी
हम से सच सच कह बात सखी

थी फ़ूलों की सेज सजाये रखी
हम बैठे उस पर सकुचाये सखी

थी थकन और आंखों में नींद भरी
था मन कई स्वप्न सजाये सखी

आहट पर धडकन बढ जाये रही
सोच पिया मिलन घडी आई सखी

फ़िर न जाने कब मेरी आंख लगी
पा स्पर्श मुझे फ़िर आई सुधी सखी

पिया प्यार से हाथ फ़िराये रहे
हम शर्म से थे सकुचाये सखी

वो बोले सोना है तो सो जाओ
ये सुन हम और घबराये सखी

फ़िर “ना” में सिर हिलाये दिये
और घूंघट में मुंह छुपाये सखी

पिया मंद मंद मुस्काये रहे
हाथों में चेहरा मेरा उठाये सखी

मैं सिमट गई शर्मा कर फ़िर
वो होले से घूंघट सरकाये सखी

था अंग अंग मेरा थर थर कांप रहा
वो हर अंग पे थे आंख गडाये सखी

चूडी की खनखन सन्नाटा तोड रही
आकुलता में पलकें झुकती जाये सखी

होंठों पर ऊंगली फ़ेर ढिठाई से
वो गालों से गाल मिलाये सखी

मेरे कान की लो को दांतो से दबा
मेरे कान में कुछ फ़ुसफ़ुसाये सखी

बोले मुझ से “पूनम” तू है चांद मेरा
आ मिल जुल चांदनी में नहायें सखी

फ़िर हार-शिंगार इक इक कर उतार दिये
कहीं कोमल बदन में कुछ चुभ न जाये सखी

“ना” मेरी सुनी नही कांधे पकड लिटाये रहे
लय पर सीना मेरा उठता गिरता जाये सखी

सांसों के स्पन्दन स्वर थे मुखरित
उस रात्रि पहर को महकाये सखी

प्रणय बेला में दो तन मन एक हुये
मधुर स्वप्न निज नैन सजाये सखी.

मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com

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