दिल का दर्पण
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जर्रा-ए-खाक हूं, हवा से परवाजें
मत पूछिये मुझ से ठिकाना मेरा
ओस भिगोये धूप जलाती बदन
न सिर्फ़ चमन, हर वीराना मेरा
न तो हस्ती. न कोई बस्ती मेरी
बस यह गुमान कि जमाना मेरा
तेरे किसी काबिल नहीं बजूद मेरा
फ़ासले तुझ से सिर्फ़ बहाना मेरा
कोई दहलीज नहीं किस्मत में मेरी
सफ़र की गर्दिशें है आशियाना मेरा
मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
9899205557 (Delhi)
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