दिल का दर्पण
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युग बीते
क्या क्या न बदला
मगर प्यार का रंग न बदला
जब भी फ़ूटा
दिल में नेह का अंकुर
नैनों की भाषा बदली है
पहरों की छांव में
मिलने का ढंग बदला है
मगर प्यार का रंग न बदला
इतिहास साक्षी है
राज मिटे हैं
ताज झुके हैं
दुनिया नें नाता तोडा है
अपनों की आंखे बदली हैं
मगर प्यार का रंग न बदला
प्राण मूल से
चुभन शूल से
किस तरह अलग हो
प्यार बिना जीवन बंजर
बिना धार ज्यूं हो खंजर
मान्यताओं के मौसम बदले हैं
मगर प्यार का रंग न बदला
जहां कहीं है
ऊंच नीच का संगम
और नजर आ जाये
रेशम में टाट का पैबंद
समझो नेह निवास वहीं है
भीतर बाहर के प्रसंग हैं बदले
मगर प्यार का रंग न बदला
युग बीते
क्या क्या न बदला
मगर प्यार का रंग न बदला
मोहिन्द्र कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
mohinder56.wordpress.com
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