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कंगन लिये फ़िरता हूं

दिल का दर्पण
दिल का दर्पण
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कंगन लिये फ़िरता हूं
कलाई तलाशता हूं
प्यास लिये होठों पर
सुराही तलाशता हूं

जिन आंखों मे कहीं
खो जाते हैं उजाले
उन्हीं आंखों में मैं
विनाई तलाशता हूं

सब देखते हैं हाथों में
मुक्कदर की लकीरें
मैं थके हारे पांवों में
बिबाई तलाशता हूं

सब ढूंढते फ़िरते हैं
चेहरों में तब्बसुम्म
मैं दिलों में बसी
सफ़ाई तलाशता हूं

मंजिल के लिये है
बेहद बेताव जमाना
इस भीड में मैं अपनी
परछाईं तलाशता हूं

कंगन लिये फ़िरता हूं
कलाई तलाशता हूं
प्यास लिये होठों पर
सुराही तलाशता हूं

मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.in

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