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बेटी व्याही तो समझो गंगा नहाये
सुनकर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये
बचपन से क्षीण परिभाष्य
हर दर, हर ठौर, भारित आश्रय
एक कोमल बेल सी मान
हर पल एक मोंढ़ा गढते
थक गई थी
अनदेखे
अनबूझे
अनचाहे
सहायक अवरोधों पर चढते चढते
फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त
परन्तु क्या बदला है
घर
गांव
अडोस-पडोस
अवलम्बन
बाकी सब वही है
एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
बेल पनपेगी,
पल्लवित होगी
पर कौन जाने
कितनी सबल बनेगी ?
क्या जनेगी ?
कोमल बेल
या
मोंढ़ा
उसी से उसका आंकलन होगा
देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है
“मोढा” शब्द पंजाबी और डोगरी भाषा का शब्द है. किसी बेल को जिस किसी वस्तु
जैसे रस्सी, कोई लकडी आदि पर सहारा दे कर चढाया जाता है वह उस बेल के लिये “मोढे” का
काम करता है.
मोहिन्दर कुमार
http://dilkadarpan.blogspot.com
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